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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

सदगुण-विकृति..

बी. बी. सी. हिंदी पर १८ फरवरी २०१० को एक समाचार प्रकाशित हुआ है...'आस्ट्रेलियाई युवक को महामंडलेश्वर की पदवी...' कुम्भ के अवसर पर हिन्दू समाज के तेरह प्रमुख अखाड़ो में से एक महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा पहली बार आस्ट्रेलियाई मूल के सिडनी निवासी 'जेसन' नामक युवक को महामंडलेश्वर के जैसे महत्वपूर्ण पद पर अभिषिक्त किया गया है.... स्मरण रहे ....सन्यासी परम्परानुसार महामंडलेश्वर का पद सन्यासियों के सर्वोच्च पद शंकराचार्य से दो पद नीचे होता है...
    जेसन अब महामंडलेश्वर जसराज गिरी के नाम से जाने जायेंगे .....एक ओर आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर लगातार होते नस्लीय हमले...दूसरी ओर एक आस्ट्रेलियाई युवक को हिन्दू सन्यास परंपरा के महत्वपूर्ण पद पर अभिषिक्त किया जाना...क्या आप को आश्चर्य नहीं होता ...?कुछ इस मामले में कहते है कि हम आस्ट्रेलिया को विश्व-बंधुत्व का सन्देश देना चाहते है....कुछ कहेंगे -यही तो है हिन्दू समाज की उदारता ....किन्तु मै इसे सावरकर के दृष्टिकोण से कहूँगा ...यह हिन्दुओ की सदगुण-विकृति है....क्या करे हम अपनी आदत से मजबूर जो है....हमें विश्व-मंच पर अपनी पीठ थप- थपवाने का पुराना शौक है....आप क्या कहेंगे....???

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