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सोमवार, 14 मार्च 2011

वे लोग जो अपनी अंतर्शक्ति के बल पर नहीं बल्कि ठकुर-सुहाती के कारण कही से सत्ता की चिंदी (जो नश्वर है ) पा गए है , स्वयं को शिखर पर प्रतिष्ठित करने के लिए...तरह तरह के प्रयत्न करते दिखाई देते है;भीतर कुछ और है बाहर कुछ और दीखाने का प्रयत्न करते है.कौवा मंदिर के शिखर पर भले बैठ जाए आखिर कांव कांव करने की अपनी आदत छोड़ सकता है जैसे ही कांव कांव करेगा असलियत सामने आ जाएगी .ऐसे लोग मंच , माला , फोटो के बहुत शौक़ीन होते है. इन्हें देखना चाहे तो बहुत सामान्य प्रयत्न में आप अपने आसपास ही पा सकते है. इनको आसानी से पहचाना जा सकता है.देश समाज की बड़ी गंभीर चर्चा करते पाए जाते है .झक्क सफेद वेश धारण करते है (कारण भीतर की कालिमा आसानी से छुप जाये)   वाणी कौशल ऐसा कि सामने वाला प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके,तर्क करने में महारत होती है, आवश्यकतानुसार कुतर्क भी करेंगे.   हमेशा मुख मंडल  पर ढाई इंची मुस्कान सजी देखी जा सकती है ,होती तो यह मुस्कान ही है पर चिपकाई हुई होती है जैसे ही इनकी उपेक्षा हुई ,घडी की सुइया सरदारजी वाला समय बताने लगाती है    इनसे कोई जीत नहीं सकता . आप इनकी आलोचना भी नहीं कर सकते, क्योंकि  इनके उच्च संपर्क होते है और समाज के अत्यंत प्रभावी प्रतिष्ठित हस्ती होते है इसलिए आलोचक स्वयं कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है.
समाज सेवा के अनेक ट्रस्टो और मंडलों के अध्यक्ष पद इन्ही से सुशोभित होते है .अपने चरण स्पर्श करवाने में आनंद का अनुभव करते है और चरण चम्पी करने वालो की ढाल बनकर रक्षा भी करते है सहज सरल और प्रमाणिक व्यक्ति इनकी निगाहों में बेवकूफ होता है .यदि ऐसा व्यक्ति इनके स्वार्थ-साधन में बाधा बनता है तो उसे किनारे करने के लिए षड़यंत्र का जाल बुनकर उसका तिया-पांचा  करने में भी नहीं हिचकते .योग्य व्यक्ति की कीर्ति इनकी आँखों में किरकिरी की तरह खटकती रहती है ,इससे उनकी बेचैनी बढ़ जाया करती है,बार-बार जुडी के मरीज की तरह निश्वाश भरते देखे जा सकते है.
                                                    आप सोच रहे होंगे कि ऐसे लोग तो सर्व-समर्थ होते है आखिर कोई इनका सामना कैसे करे...? कैसे स्वयं को बचाए...? इनसे मुक्ति कैसे पाए..?
                                                                                  यदि आपको इनसे मुक्ति चाहिए ...तो मेरे पास है एक शर्तिया ...पेटेंट...राम-बाण नुस्खा ...!!!क्या आप इसे आजमाना चाहेंगे...??? क्या फीस ...? जी नहीं अभी कंपनी फकत अपने नुस्खे का ज्यादा से ज्यादा प्रचार चाहती है...इसलिए कोई मूल्य नहीं...बिलकुल फ्री ऑफ़ चार्ज...क्या कहा ...?विश्वाश नहीं होता ..?हाँ बिना दाम मिलने वाली वस्तु पर  कोई कैसे यकीन कर सकता है...!!! ठीक ...फिर छोटीसी कीमत भी चुका दीजिये... कीमत है ...आप सिर्फ इतना कीजिये  अपने आस-पास ऐसे लोगो को चिन्हित कीजिये ओर बेनकाब कीजिये...!!!
                   हाँ तो अब नुस्खा हाजिर है...किसी भी व्यक्ति के जिन्दा रहने के लिए आक्सीजन सबसे पहली जरूरत होती है...किन्तु इस किस्म के लोगो के लिए आक्सीजन से भी पहले जरूरी है-"इम्पोर्टेंस" की. आप बस इतना कीजिये ...धीरे-धीरे इन्हें महत्व देना बंद कीजिये...दो -तीन महीने  के बाद आप पाएंगे कि इनकी बेचेनी बढ़ रही है ..कुछ परेशान से लगने लगे है ...बात करने में निगाहे नहीं मिला पा रहे है ...कई मौको पर किसी बात पर जब आपका दृढ रूख देखते है तो अपने हाथ की उंगलिया रगड़ते है...कुढ़ते है ...दो महीने ऐसे चलने दीजिये...अब पूरी तरहसे उपेक्षा करना शुरू कर दीजिये....कीजिये और कीजिये....अब देखिये ...वे त्याग -पत्र की चाल चलेंगे.... (चाल इसलिए कि असल में त्याग-पत्र के बहाने दबाव बनाना चाहते है ) स्वयं दृढ़ता से सत्य पर टिके रहिये और उचित समय और उचित स्थान देख कर इनके एक-एक वस्त्र उतारकर नंगा कीजिये...! अब वे चाहेंगे कि कोई हमसे कहे कि "नहीं-नहीं आप अपना त्याग-पत्र वापस ले लीजिये आपके बिना कैसे चलेगा...? सब आपके प्रताप से चल रहा है..मान जाइए ना...! अगर कोई कहने वाला न मिले तो फिर अपने चमचो से अपने पक्ष में वातावरण तैयार करवाएंगे .येन केन प्रकारेण बने रहने के यथाशक्य उपाय करेंगे...     कृमशः  ...      

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

!! योगक्षेमं वहाम्यहम !!

भगवान् श्रीकृष्ण और केवल श्रीकृष्ण ....ह्रदय की अतल गहराइयो में इस अटल अगाध विश्वाश की अनुभूति कीजिये...और छोड़ दीजिये अपनी नैय्या उनके भरोसे...भय को झटक कर दूर फेंक दीजिये...आपत्ति आये आने दीजिये...संकट आये आने दीजिये...आपत्ति से,संकट से बचने का कोई भौतिक उपक्रम मत कीजिये...यदि करते है तो इसका अर्थ है -अभी विश्वाश कच्चा है ...!!जैसे संतान अपने पिता के संरक्षण में निर्भय होकर क्रीडा करती है ,उसे विश्वाश रहता है की मुझ पर कोई संकट आया तो मेरा सरक्षक मौजूद है.ऐसा भरोसा कीजिये....फिर देखिये उन पर किये भरोसे का चमत्कार...!!! देखिये वे अपने आश्वस्ति भरे वचनों से अपनी संतानों को कैसे आश्वस्त कर रहे है ...



                                        "मेरे मार्ग पर पैर रखकर तो देख,...!!"
तेरे सब मार्ग न खोल दू तो कहना
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"मेरे लिए खर्च करके तो देख,

कुबेर के भंडार न खोल दूँ तो कहना !!"

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"मेरे लिए कडवे वचन सुन कर तो देख,

कृपा न बरसे तो कहना !!"

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"मेरी बातें लोगो से करके तो देख,

तुझे मूल्यवान न बना दूँ तो कहना !!"

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"मुझे अपना मददगार बनाकर तो देख

तुझे सबकी गुलामी से न छुडा दूँ तो कहना !!"

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"मेरे लिए आंसू बहाकर तो देख

तेरे जीवन में आनंद के सागर न भर दूँ तो कहना !!"

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"मेरे लिए कुछ बनकर तो देख,

तुझे कीमती न बना दूँ तो कहना !!"

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"मेरे मार्ग पर निकल कर तो देख,

तुझे शांति दूत न बना दूँ तो कहना !!"

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"स्वयं को न्योछावर करके तो देख,

तुझे मशहूर न करा दूँ तो कहना !!"

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"मेरा कीर्तन करके तो देख,

जगत का विस्मरण न करा दूँ तो कहना !!"

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"तू मेरा बनकर तो देख,

हर एक को तेरा न बना दूँ तो कहना !!"