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शनिवार, 31 अक्तूबर 2009


"शाहजंहा के दरबार में तरही मुशायरे की महफिल जमी हुयी थी ......तुकबंदी के साथ सवाल जवाब का दौर चल रहा था ..... !

एक शायर ने शेर अर्ज़ किया -

काफिर है वो दुनिया में, जो बन्दे नहीं इस्लाम के !


इसी महफिल मै उस काल के प्रसिद्ध विद्वान् जग्गनाथ पंडित को यह शेर नागवार गुजरा उन्होंने तुंरत समस्या पूर्ति की -

लाम के मानीन्द है , गेसू मेरे घनश्याम के !

काफिर है वो दुनिया मै जो बन्दे नहीं इस 'लाम' के !!

(लाम - उर्दू भाषा का अक्षर है जिसकी बनावट घुंघराली है !)

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