" दुसरो को छाया देने वाला दरख्त जब खुद नंगा हो जाता है, उसमे कोपले उगने की सम्भावनाये समाप्त हो जाती है , तब दांतदार आरी की बेरहम धार कमजोर तने के आढे-तिरछे टुकड़े कर डालती है ! तीखी चिलचिलाती धुप उसकी बची खुची नमी को सोख लेती है , और धुप में ऐठी काली बदशक्ल लकडियाँ जलाने के काम आ सकने की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए मजबूर कर दी जाती है !!!! "
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