सृजन...
चिदानंद रूपम शिवोहम...शिवोहम...
गुरुवार, 13 सितंबर 2012
सोमवार, 14 मार्च 2011
वे लोग जो अपनी अंतर्शक्ति के बल पर नहीं बल्कि ठकुर-सुहाती के कारण कही से सत्ता की चिंदी (जो नश्वर है ) पा गए है , स्वयं को शिखर पर प्रतिष्ठित करने के लिए...तरह तरह के प्रयत्न करते दिखाई देते है;भीतर कुछ और है बाहर कुछ और दीखाने का प्रयत्न करते है.कौवा मंदिर के शिखर पर भले बैठ जाए आखिर कांव कांव करने की अपनी आदत छोड़ सकता है जैसे ही कांव कांव करेगा असलियत सामने आ जाएगी .ऐसे लोग मंच , माला , फोटो के बहुत शौक़ीन होते है. इन्हें देखना चाहे तो बहुत सामान्य प्रयत्न में आप अपने आसपास ही पा सकते है. इनको आसानी से पहचाना जा सकता है.देश समाज की बड़ी गंभीर चर्चा करते पाए जाते है .झक्क सफेद वेश धारण करते है (कारण भीतर की कालिमा आसानी से छुप जाये) वाणी कौशल ऐसा कि सामने वाला प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके,तर्क करने में महारत होती है, आवश्यकतानुसार कुतर्क भी करेंगे. हमेशा मुख मंडल पर ढाई इंची मुस्कान सजी देखी जा सकती है ,होती तो यह मुस्कान ही है पर चिपकाई हुई होती है जैसे ही इनकी उपेक्षा हुई ,घडी की सुइया सरदारजी वाला समय बताने लगाती है इनसे कोई जीत नहीं सकता . आप इनकी आलोचना भी नहीं कर सकते, क्योंकि इनके उच्च संपर्क होते है और समाज के अत्यंत प्रभावी प्रतिष्ठित हस्ती होते है इसलिए आलोचक स्वयं कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है.
समाज सेवा के अनेक ट्रस्टो और मंडलों के अध्यक्ष पद इन्ही से सुशोभित होते है .अपने चरण स्पर्श करवाने में आनंद का अनुभव करते है और चरण चम्पी करने वालो की ढाल बनकर रक्षा भी करते है सहज सरल और प्रमाणिक व्यक्ति इनकी निगाहों में बेवकूफ होता है .यदि ऐसा व्यक्ति इनके स्वार्थ-साधन में बाधा बनता है तो उसे किनारे करने के लिए षड़यंत्र का जाल बुनकर उसका तिया-पांचा करने में भी नहीं हिचकते .योग्य व्यक्ति की कीर्ति इनकी आँखों में किरकिरी की तरह खटकती रहती है ,इससे उनकी बेचैनी बढ़ जाया करती है,बार-बार जुडी के मरीज की तरह निश्वाश भरते देखे जा सकते है.
आप सोच रहे होंगे कि ऐसे लोग तो सर्व-समर्थ होते है आखिर कोई इनका सामना कैसे करे...? कैसे स्वयं को बचाए...? इनसे मुक्ति कैसे पाए..?
यदि आपको इनसे मुक्ति चाहिए ...तो मेरे पास है एक शर्तिया ...पेटेंट...राम-बाण नुस्खा ...!!!क्या आप इसे आजमाना चाहेंगे...??? क्या फीस ...? जी नहीं अभी कंपनी फकत अपने नुस्खे का ज्यादा से ज्यादा प्रचार चाहती है...इसलिए कोई मूल्य नहीं...बिलकुल फ्री ऑफ़ चार्ज...क्या कहा ...?विश्वाश नहीं होता ..?हाँ बिना दाम मिलने वाली वस्तु पर कोई कैसे यकीन कर सकता है...!!! ठीक ...फिर छोटीसी कीमत भी चुका दीजिये... कीमत है ...आप सिर्फ इतना कीजिये अपने आस-पास ऐसे लोगो को चिन्हित कीजिये ओर बेनकाब कीजिये...!!!
हाँ तो अब नुस्खा हाजिर है...किसी भी व्यक्ति के जिन्दा रहने के लिए आक्सीजन सबसे पहली जरूरत होती है...किन्तु इस किस्म के लोगो के लिए आक्सीजन से भी पहले जरूरी है-"इम्पोर्टेंस" की. आप बस इतना कीजिये ...धीरे-धीरे इन्हें महत्व देना बंद कीजिये...दो -तीन महीने के बाद आप पाएंगे कि इनकी बेचेनी बढ़ रही है ..कुछ परेशान से लगने लगे है ...बात करने में निगाहे नहीं मिला पा रहे है ...कई मौको पर किसी बात पर जब आपका दृढ रूख देखते है तो अपने हाथ की उंगलिया रगड़ते है...कुढ़ते है ...दो महीने ऐसे चलने दीजिये...अब पूरी तरहसे उपेक्षा करना शुरू कर दीजिये....कीजिये और कीजिये....अब देखिये ...वे त्याग -पत्र की चाल चलेंगे.... (चाल इसलिए कि असल में त्याग-पत्र के बहाने दबाव बनाना चाहते है ) स्वयं दृढ़ता से सत्य पर टिके रहिये और उचित समय और उचित स्थान देख कर इनके एक-एक वस्त्र उतारकर नंगा कीजिये...! अब वे चाहेंगे कि कोई हमसे कहे कि "नहीं-नहीं आप अपना त्याग-पत्र वापस ले लीजिये आपके बिना कैसे चलेगा...? सब आपके प्रताप से चल रहा है..मान जाइए ना...! अगर कोई कहने वाला न मिले तो फिर अपने चमचो से अपने पक्ष में वातावरण तैयार करवाएंगे .येन केन प्रकारेण बने रहने के यथाशक्य उपाय करेंगे... कृमशः ...
समाज सेवा के अनेक ट्रस्टो और मंडलों के अध्यक्ष पद इन्ही से सुशोभित होते है .अपने चरण स्पर्श करवाने में आनंद का अनुभव करते है और चरण चम्पी करने वालो की ढाल बनकर रक्षा भी करते है सहज सरल और प्रमाणिक व्यक्ति इनकी निगाहों में बेवकूफ होता है .यदि ऐसा व्यक्ति इनके स्वार्थ-साधन में बाधा बनता है तो उसे किनारे करने के लिए षड़यंत्र का जाल बुनकर उसका तिया-पांचा करने में भी नहीं हिचकते .योग्य व्यक्ति की कीर्ति इनकी आँखों में किरकिरी की तरह खटकती रहती है ,इससे उनकी बेचैनी बढ़ जाया करती है,बार-बार जुडी के मरीज की तरह निश्वाश भरते देखे जा सकते है.
आप सोच रहे होंगे कि ऐसे लोग तो सर्व-समर्थ होते है आखिर कोई इनका सामना कैसे करे...? कैसे स्वयं को बचाए...? इनसे मुक्ति कैसे पाए..?
यदि आपको इनसे मुक्ति चाहिए ...तो मेरे पास है एक शर्तिया ...पेटेंट...राम-बाण नुस्खा ...!!!क्या आप इसे आजमाना चाहेंगे...??? क्या फीस ...? जी नहीं अभी कंपनी फकत अपने नुस्खे का ज्यादा से ज्यादा प्रचार चाहती है...इसलिए कोई मूल्य नहीं...बिलकुल फ्री ऑफ़ चार्ज...क्या कहा ...?विश्वाश नहीं होता ..?हाँ बिना दाम मिलने वाली वस्तु पर कोई कैसे यकीन कर सकता है...!!! ठीक ...फिर छोटीसी कीमत भी चुका दीजिये... कीमत है ...आप सिर्फ इतना कीजिये अपने आस-पास ऐसे लोगो को चिन्हित कीजिये ओर बेनकाब कीजिये...!!!
हाँ तो अब नुस्खा हाजिर है...किसी भी व्यक्ति के जिन्दा रहने के लिए आक्सीजन सबसे पहली जरूरत होती है...किन्तु इस किस्म के लोगो के लिए आक्सीजन से भी पहले जरूरी है-"इम्पोर्टेंस" की. आप बस इतना कीजिये ...धीरे-धीरे इन्हें महत्व देना बंद कीजिये...दो -तीन महीने के बाद आप पाएंगे कि इनकी बेचेनी बढ़ रही है ..कुछ परेशान से लगने लगे है ...बात करने में निगाहे नहीं मिला पा रहे है ...कई मौको पर किसी बात पर जब आपका दृढ रूख देखते है तो अपने हाथ की उंगलिया रगड़ते है...कुढ़ते है ...दो महीने ऐसे चलने दीजिये...अब पूरी तरहसे उपेक्षा करना शुरू कर दीजिये....कीजिये और कीजिये....अब देखिये ...वे त्याग -पत्र की चाल चलेंगे.... (चाल इसलिए कि असल में त्याग-पत्र के बहाने दबाव बनाना चाहते है ) स्वयं दृढ़ता से सत्य पर टिके रहिये और उचित समय और उचित स्थान देख कर इनके एक-एक वस्त्र उतारकर नंगा कीजिये...! अब वे चाहेंगे कि कोई हमसे कहे कि "नहीं-नहीं आप अपना त्याग-पत्र वापस ले लीजिये आपके बिना कैसे चलेगा...? सब आपके प्रताप से चल रहा है..मान जाइए ना...! अगर कोई कहने वाला न मिले तो फिर अपने चमचो से अपने पक्ष में वातावरण तैयार करवाएंगे .येन केन प्रकारेण बने रहने के यथाशक्य उपाय करेंगे... कृमशः ...
शुक्रवार, 21 जनवरी 2011
!! योगक्षेमं वहाम्यहम !!
भगवान् श्रीकृष्ण और केवल श्रीकृष्ण ....ह्रदय की अतल गहराइयो में इस अटल अगाध विश्वाश की अनुभूति कीजिये...और छोड़ दीजिये अपनी नैय्या उनके भरोसे...भय को झटक कर दूर फेंक दीजिये...आपत्ति आये आने दीजिये...संकट आये आने दीजिये...आपत्ति से,संकट से बचने का कोई भौतिक उपक्रम मत कीजिये...यदि करते है तो इसका अर्थ है -अभी विश्वाश कच्चा है ...!!जैसे संतान अपने पिता के संरक्षण में निर्भय होकर क्रीडा करती है ,उसे विश्वाश रहता है की मुझ पर कोई संकट आया तो मेरा सरक्षक मौजूद है.ऐसा भरोसा कीजिये....फिर देखिये उन पर किये भरोसे का चमत्कार...!!! देखिये वे अपने आश्वस्ति भरे वचनों से अपनी संतानों को कैसे आश्वस्त कर रहे है ...
तेरे सब मार्ग न खोल दू तो कहना
=========================
"मेरे लिए खर्च करके तो देख,
कुबेर के भंडार न खोल दूँ तो कहना !!"
================
"मेरे लिए कडवे वचन सुन कर तो देख,
कृपा न बरसे तो कहना !!"
==================
"मेरी बातें लोगो से करके तो देख,
तुझे मूल्यवान न बना दूँ तो कहना !!"
===================
"मुझे अपना मददगार बनाकर तो देख
तुझे सबकी गुलामी से न छुडा दूँ तो कहना !!"
===================
"मेरे लिए आंसू बहाकर तो देख
तेरे जीवन में आनंद के सागर न भर दूँ तो कहना !!"
======================
"मेरे लिए कुछ बनकर तो देख,
तुझे कीमती न बना दूँ तो कहना !!"
==================
"मेरे मार्ग पर निकल कर तो देख,
तुझे शांति दूत न बना दूँ तो कहना !!"
=====================
"स्वयं को न्योछावर करके तो देख,
तुझे मशहूर न करा दूँ तो कहना !!"
===================
"मेरा कीर्तन करके तो देख,
जगत का विस्मरण न करा दूँ तो कहना !!"
=====================
"तू मेरा बनकर तो देख,
हर एक को तेरा न बना दूँ तो कहना !!"
गुरुवार, 4 मार्च 2010
हुसैनवा कतरी हो गए हमार...!!!सन्दर्भ:मकबूल फ़िदा हुसेन
मकबूल फ़िदा हुसेन जब से 'कतरी'...हुए है...मेरा मतलब हुसेन को जब से कतर की नागरिकता मिली है...भारत में 'कही ख़ुशी कही गम' का माहौल बन गया है...तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादी छातिया पीट पीट कर स्यापा कर रहे है...जैसे वे एकदम अनाथ हो गए है...दूसरी ओर अपनी अस्मिता को प्रथम वरीयता देने वाला खेमा इस बात पर खुश है कि माँ अपने उस कुल कलंकी पुत्र के भार से मुक्त हुई...जिसने अपनी ही माता के वक्ष-स्थल से खिलवाड़ किया जिसके वक्ष-स्थल के दुग्ध से उसका पोषण हुआ था... हमारी परंपरा क्या कहती है..उसको वरुण गाँधी ने भी दोहराया है- ऐसे हाथो को काट दो...बल्कि में तो कहूंगा काटो मत जड़ से उखाड़ दो ताकि एम.एफ़.हुसेन की सात पीढ़िया भी बिना हाथ पैदा हो जो कभी हिन्दू देवी-देवताओ और भारत माता की नग्न तस्वीर बनाने की जुर्रत सपने में भी न करे...!अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो गीत में भी तो यही कहा है-खीच दो अपने खूँ से जमी पे लकीर छूने न पाए सीता का दामन,रावण कोई... !
हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों की जमात,हमारे तथाकथित प्रगतिशील,और हमारे तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादी क्या कहते है ...वाकई यह भारतीय लोकतंत्र का अपमान है...भारत की व्यवस्था एक कलाकार की रक्षा करने में असक्षम सिद्ध हुई..भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा की गारंटी देता है ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा होनी चाहिए...हम विश्व-मंच पर क्या मुह दिखायेंगे...आदि-आदि !
अरे भाई में तो कहता हू कि हमारे यहाँ तो जब कुत्ता पागल हो जाता है तो नगर पालिका कर्मचारी हाथो में गंगाराम लेकर आते है और कुत्ते को परलोक पठाने के वीसा-पासपोर्ट का इंतजाम कर फ्लाईट में बिठा देते है ...अच्छा है हमारे नगर पालिका कर्मचारियों कों एक काम तो काम करना पड़ा! दूसरी बात यह कि...कलाकार किसी एक देश की सम्पति नहीं होते...९४ वर्षीय हुसेन अब कुछ समय क़तर के शेख के परिवार की महिलाओ की तस्वीरे बनायेंगे तो इसमें आपको हर्ज क्या है ? और इसके बाद भी यदि आपको यानि वही तथाकथित सेकूलर बिरादरी कों हुसेन से अपने परिवार की न्यूड तस्वीरे बनवानी है तो फोटो इ मेल कर दीजियेगा...बन जाएगी...!जब तक देश में ऐसी सेकूलर बिरादरी मौजूद है तब तक हुसेन जैसे विकृत और कुंठित विचारो वाले चित्रकार भारतीय अस्मिता से खिलवाड़ करते रहेंगे...! हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाने वालो अपने गिरेबान में झांक कर देखो ....हम इसे किसी भी सूरत में बर्दास्त नहीं कर सकते...स्वतंत्रता का क्या अर्थ है ?आप को स्वतंत्रता है सड़क पर चलने की तो क्या आप भीड़ में बदतमीजी से हाथ पैर लहरा कर चलेंगे ? याद रखिये आप की स्वतंत्रता वहा पर ख़त्म होती है जहा से दूसरे की नाक शुरू होती है ...समझे क्या...???
हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों की जमात,हमारे तथाकथित प्रगतिशील,और हमारे तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादी क्या कहते है ...वाकई यह भारतीय लोकतंत्र का अपमान है...भारत की व्यवस्था एक कलाकार की रक्षा करने में असक्षम सिद्ध हुई..भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा की गारंटी देता है ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा होनी चाहिए...हम विश्व-मंच पर क्या मुह दिखायेंगे...आदि-आदि !
अरे भाई में तो कहता हू कि हमारे यहाँ तो जब कुत्ता पागल हो जाता है तो नगर पालिका कर्मचारी हाथो में गंगाराम लेकर आते है और कुत्ते को परलोक पठाने के वीसा-पासपोर्ट का इंतजाम कर फ्लाईट में बिठा देते है ...अच्छा है हमारे नगर पालिका कर्मचारियों कों एक काम तो काम करना पड़ा! दूसरी बात यह कि...कलाकार किसी एक देश की सम्पति नहीं होते...९४ वर्षीय हुसेन अब कुछ समय क़तर के शेख के परिवार की महिलाओ की तस्वीरे बनायेंगे तो इसमें आपको हर्ज क्या है ? और इसके बाद भी यदि आपको यानि वही तथाकथित सेकूलर बिरादरी कों हुसेन से अपने परिवार की न्यूड तस्वीरे बनवानी है तो फोटो इ मेल कर दीजियेगा...बन जाएगी...!जब तक देश में ऐसी सेकूलर बिरादरी मौजूद है तब तक हुसेन जैसे विकृत और कुंठित विचारो वाले चित्रकार भारतीय अस्मिता से खिलवाड़ करते रहेंगे...! हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाने वालो अपने गिरेबान में झांक कर देखो ....हम इसे किसी भी सूरत में बर्दास्त नहीं कर सकते...स्वतंत्रता का क्या अर्थ है ?आप को स्वतंत्रता है सड़क पर चलने की तो क्या आप भीड़ में बदतमीजी से हाथ पैर लहरा कर चलेंगे ? याद रखिये आप की स्वतंत्रता वहा पर ख़त्म होती है जहा से दूसरे की नाक शुरू होती है ...समझे क्या...???
शनिवार, 27 फ़रवरी 2010
अच्छा दीखने का नहीं...अच्छा बनने का प्रयत्न कीजिये....!!!
प्रत्येक व्यक्ति चाहता है, लोक व्यवहार में...समाज में मेरी प्रतिष्ठा बढे...मेरे यश में वृद्धि हो...मेरी स्वीकार्यता...लोकप्रियता बढे...!यह मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है...आखिर ऐसा कौन नहीं चाहेगा...?
इसके लिए वह भांति-भांति के उपक्रम करता है...किन्तु क्षमा करे...सामान्य रूप से अच्छा बनने के स्थान पर अच्छा दीखाने की कोशिश की जाती है...!स्वयं को अच्छा दीखाने की इस कोशिश में एक व्यक्ति न जाने कितने-कितने मुखौटे लगाता रहता है ! आंशिक मात्र में ही सही, किन्तु यह क्रम बचपन से ही आरम्भ हो जाता है...जाने अनजाने इस ओर प्रवृत करने का काम करते है बच्चे के माता-पिता और उसके परिवार के अन्य वरिष्ठ सदस्य...!क्योकि शिशु जब जन्म लेता है तो उसके साथ होती है उसकी सहज प्रवृति,उसकी मासूमियत...! हम अपनी अतृप्त महत्वाकांक्षाओ को पूरा करने के लिए अनजाने ही अपने विचार अपनी सोच अपने तर्कों के साथ उस पर थोपते जाते है...बालक शनै-शनै यह सब स्वीकारता जाता है ...उसका स्व उसकी सहज प्रवृतिया...उसकी मासूमियत उससे छूटती जाती है,जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है...विजातीय सोच-विचार जो उसके अपने नहीं है,के कारण उसकी मुस्कान में,आँखों में चहरे की भाव-भंगिमा में परिवर्तन आने लगता है
उसके अपने स्व की मूल प्रवृतियों का विलोपन होते-होते उसके व्यवहार में...व्यक्तित्व में सहजता के स्थान पर कृत्रिमता का प्रवेश होता जाता है !
यदि हम बालक को उसकी सहजता और मासूमियत के साथ बड़ा होने दे जो उसमे जन्मतः विद्यमान है तो बदले में हमें प्राप्त होगा...एक सुन्दर और समस्याओं से रहित भारत....!!!!
इसके लिए वह भांति-भांति के उपक्रम करता है...किन्तु क्षमा करे...सामान्य रूप से अच्छा बनने के स्थान पर अच्छा दीखाने की कोशिश की जाती है...!स्वयं को अच्छा दीखाने की इस कोशिश में एक व्यक्ति न जाने कितने-कितने मुखौटे लगाता रहता है ! आंशिक मात्र में ही सही, किन्तु यह क्रम बचपन से ही आरम्भ हो जाता है...जाने अनजाने इस ओर प्रवृत करने का काम करते है बच्चे के माता-पिता और उसके परिवार के अन्य वरिष्ठ सदस्य...!क्योकि शिशु जब जन्म लेता है तो उसके साथ होती है उसकी सहज प्रवृति,उसकी मासूमियत...! हम अपनी अतृप्त महत्वाकांक्षाओ को पूरा करने के लिए अनजाने ही अपने विचार अपनी सोच अपने तर्कों के साथ उस पर थोपते जाते है...बालक शनै-शनै यह सब स्वीकारता जाता है ...उसका स्व उसकी सहज प्रवृतिया...उसकी मासूमियत उससे छूटती जाती है,जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है...विजातीय सोच-विचार जो उसके अपने नहीं है,के कारण उसकी मुस्कान में,आँखों में चहरे की भाव-भंगिमा में परिवर्तन आने लगता है
उसके अपने स्व की मूल प्रवृतियों का विलोपन होते-होते उसके व्यवहार में...व्यक्तित्व में सहजता के स्थान पर कृत्रिमता का प्रवेश होता जाता है !
यदि हम बालक को उसकी सहजता और मासूमियत के साथ बड़ा होने दे जो उसमे जन्मतः विद्यमान है तो बदले में हमें प्राप्त होगा...एक सुन्दर और समस्याओं से रहित भारत....!!!!
रविवार, 21 फ़रवरी 2010
नेह...
प्रेम न बाड़ी उपजे,प्रेम न हाट बिकाय...!
राजा प्रजा जोहि रुचे.शीश देई ले जाय...!!
संत कबीर ने प्रेम को अत्यंत सरल- सहज शब्दों में व्याख्यायित किया है...!
कवि 'घनानंद' ने भी सच्चे प्रेम को बहुत ही सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है...
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥
राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में दो सखिया ईधन के जुगाड़ में निकली थी...चलते-चलते मार्ग में एक सखी की नजर एक पानी के गड्ढे के पास मृत पड़े मृग-जोड़े पर पड़ी...उसने दूसरी सखी से कुछ ऐसे पूछा ....
"खैय्यो न दीखे पारधि लग्यो न दीखे बाण,
हे सखी में थाने पूछू,किस विध तज्या प्राण...??
दूसरी सखी ने ऐसे उत्तर दिया...
"जल थोड़ो नेहो घणो,लग्या प्रीत का बाण...!
तू पी,तू पी करता ही,दोन्यो तज्या पिराण...!!"
राजा प्रजा जोहि रुचे.शीश देई ले जाय...!!
संत कबीर ने प्रेम को अत्यंत सरल- सहज शब्दों में व्याख्यायित किया है...!
कवि 'घनानंद' ने भी सच्चे प्रेम को बहुत ही सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है...
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥
क्या प्रेम की इतनी उदात्त उच्चतम अभिव्यक्ति दुनिया के किसी अन्य साहित्य में देखी जा सकती है ...निसंदेह रूप से नहीं, यह केवल और केवल इस भारत-भूमि में ही संभव है...अब हमें पश्चिम अपने velentine-डे के माध्यम से प्रेम का पाठ पढ़ा रहा है हमारे युवा इस क्षुद्र बाजारवाद से प्रेरित वासनात्मक आकर्षण की चकाचौंध के पीछे बस भागे जा रहे है.... वे यह भूल चुके है कि राधा और कृष्ण प्रकृति और पुरुष के दो रूप उन्ही की सरस भूमि है यह... यमुना कालिंदी के कूल आज भी साक्षी है गोपाल की मधु- वेणु की सुमधुर तानो के जिसे सुनकर गोपिकाए सुध-बुध खो देती थी....पखेरू चहकना भूल जाते थे....!कश्मीर में जाइये आप को सुनने मिलेगी...लोलरे और बम्बुर की पवित्र प्रणय-गाथा...प्रणय की पवित्र-वेदि पर उनका त्याग आज भी आँखों को गीला कर देता है....!पंजाब में जाईये सोहना-जेनी, हीर-राँझा की कथाये गूंजती सुनाई देगी...!धोरो की धरती पर मूमल-महेंद्र के प्रेम-गीत सुनाई देंगे....प्रेम ऐसा की प्रणय-वेदि पर अपने प्राणों का उत्सर्ग...कर देता है .. पश्चिम जंहा प्रेम केवल शारीरिक आकर्षण से आरम्भ होता है ...वही समाप्त हो जाता है.... क्या हमारा आदर्श हो सकता है...??? एक छोटी लघु-कथा से अपनी बात पूरी करता हू....
राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में दो सखिया ईधन के जुगाड़ में निकली थी...चलते-चलते मार्ग में एक सखी की नजर एक पानी के गड्ढे के पास मृत पड़े मृग-जोड़े पर पड़ी...उसने दूसरी सखी से कुछ ऐसे पूछा ....
"खैय्यो न दीखे पारधि लग्यो न दीखे बाण,
हे सखी में थाने पूछू,किस विध तज्या प्राण...??
दूसरी सखी ने ऐसे उत्तर दिया...
"जल थोड़ो नेहो घणो,लग्या प्रीत का बाण...!
तू पी,तू पी करता ही,दोन्यो तज्या पिराण...!!"
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
सदगुण-विकृति..
बी. बी. सी. हिंदी पर १८ फरवरी २०१० को एक समाचार प्रकाशित हुआ है...'आस्ट्रेलियाई युवक को महामंडलेश्वर की पदवी...' कुम्भ के अवसर पर हिन्दू समाज के तेरह प्रमुख अखाड़ो में से एक महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा पहली बार आस्ट्रेलियाई मूल के सिडनी निवासी 'जेसन' नामक युवक को महामंडलेश्वर के जैसे महत्वपूर्ण पद पर अभिषिक्त किया गया है.... स्मरण रहे ....सन्यासी परम्परानुसार महामंडलेश्वर का पद सन्यासियों के सर्वोच्च पद शंकराचार्य से दो पद नीचे होता है...
जेसन अब महामंडलेश्वर जसराज गिरी के नाम से जाने जायेंगे .....एक ओर आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर लगातार होते नस्लीय हमले...दूसरी ओर एक आस्ट्रेलियाई युवक को हिन्दू सन्यास परंपरा के महत्वपूर्ण पद पर अभिषिक्त किया जाना...क्या आप को आश्चर्य नहीं होता ...?कुछ इस मामले में कहते है कि हम आस्ट्रेलिया को विश्व-बंधुत्व का सन्देश देना चाहते है....कुछ कहेंगे -यही तो है हिन्दू समाज की उदारता ....किन्तु मै इसे सावरकर के दृष्टिकोण से कहूँगा ...यह हिन्दुओ की सदगुण-विकृति है....क्या करे हम अपनी आदत से मजबूर जो है....हमें विश्व-मंच पर अपनी पीठ थप- थपवाने का पुराना शौक है....आप क्या कहेंगे....???
जेसन अब महामंडलेश्वर जसराज गिरी के नाम से जाने जायेंगे .....एक ओर आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर लगातार होते नस्लीय हमले...दूसरी ओर एक आस्ट्रेलियाई युवक को हिन्दू सन्यास परंपरा के महत्वपूर्ण पद पर अभिषिक्त किया जाना...क्या आप को आश्चर्य नहीं होता ...?कुछ इस मामले में कहते है कि हम आस्ट्रेलिया को विश्व-बंधुत्व का सन्देश देना चाहते है....कुछ कहेंगे -यही तो है हिन्दू समाज की उदारता ....किन्तु मै इसे सावरकर के दृष्टिकोण से कहूँगा ...यह हिन्दुओ की सदगुण-विकृति है....क्या करे हम अपनी आदत से मजबूर जो है....हमें विश्व-मंच पर अपनी पीठ थप- थपवाने का पुराना शौक है....आप क्या कहेंगे....???
सदस्यता लें
संदेश (Atom)